बुड्ढा जो बच्चों के मनोरंजन का साधन था
बच्चे उन्हें रोज चिढ़ाते
गर्मी के मौसम में उनके
पेड़ों से आम चुराते
देखता बुड्ढे जब बच्चों को
दूर से ही खरी-खोटी सुनाते
बच्चे झट बंदर की तरह
कूद के भाग जाते
बुड्ढा उन्हें दूर- दूर तक पीछा करता
पर वह हाथ न आता
लौट पड़ता ज्योही थक कर
त्योही , बच्चे लौट पढ़ते शोर मचाकर
धरा से ले छोटी कंकड़
फेकता बुड्ढे के ऊपर
क्रोधित बूढा क्रोधित होकर
बच्चे को देते गाली
बच्चे आनंदित होकर बजाते खूब ताली
हतास और निराश होकर बुड्ढे लौट पड़ते घर
बच्चे उनके आमों की टहनियां तोड़ मचाते कहर
अचानक चुपके से बुड्ढा कहीं से आ जाता
इस बार उसकी पकड़ में एक बच्चा पड़ जाता
बच्चे की पीठ पर धीरे से मुक्का जमाता
बच्चे की बाल पकड़ उसे खूब रुलाता
बच्चा रो- रो कर कहता छोड़ दो मुझे बाबा
अब मैं ना तेरा आम चुराऊंगा
अब मैं ना तुझे चिढ़ाउंगा
जयोहि बूढा उसे छोड़ता
दूर जाकर चिढ़ाने लगता
बूढ़े भी उसकी शरारत चाल देख कर हंस पड़ता
और कहता
तू ना कभी सुधरेगा तुम ना कभी बदलेगा
तुम लोग मेरी जान लेकर छोड़ेगा
ठीक उसी रात बुड्ढे को आया ज्वर
अस्पताल ले जाने के क्रम में गया वह मर
बच्चे ने सुनी जब बुड्ढे की मरने की खबर
सभी बच्चे रोने लगे मृतक बुड्ढे को घेरकर
कहने लगे वह गा गा कर
बुड्ढा जो मनोरंजन का साधन था
आज चला गया हमलोगों को छोड़कर
✍️कार्तिक कुसुम
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