कैसे असभ्य समाज में है रे

कैसे असभ्य समाज में
रोज रोज झगड़े होते
नित्य एक दूसरे पर ताने मारते
और कसते फब्तियां
बच्चे से बूढ़े तक भी
बकते कितने गालियां
कैसे असभ्य समाज में है रे
कैसे असभ्य समाज में
रोज एक दूसरे को मारने की होड़
रोज एक दूसरे से छीना झपटी की प्रथा
नित्य नए-नए धमकियां
कैसे असभ्य समाज में है रे
कैसे असभ्य समाज में
सुना अपने पूर्वजों की सभ्यता
और सरलता के चर्चे
दूर सुदूर इलाकों में होते
आज उनकी नई पीढ़ियां
क्यों दुर्योधन और रावण बन बैठी
बकती क्यों इतनी गर्वोक्तिया और गालियां
कैसे असभ्य समाज में है रे
कैसे असभ्य समाज में
क्यों हम बिखरे है
अपनों से इतने
क्यों रूठे हैं एक दूसरे
क्या मुझमें अपनप्त और
भाईचारे की भावना मिट गई
या
हम असभ्य हुए
हमारी प्रसिद्धि मिट गईगई
✍️कार्तिक कुसुम
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