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"टूटल सपना, भींजल खेत"

सोनवा नियन गेहुआं,   सोनवा नियन खेत।   देखी के किसान के   भर गेल हले पेट। नरम-नरम हथिया से सहलउलकी,   प्यार से गेहुआं के बाली।   सुघ्घर गेहुआं देख के,   हम सपना लगलीं पाली। सोचलीं–   ए साल गेहुआं बेच के   छोटका के सहर पढ़ई भेजब।   स्कूल में नाम लिखइब।   ओही पइसा से   छोटका ला जूता-चप्पल किनब।   पढ़ाई करईब, बड़ आदमी बनइब। बाकी विधाता ऐसन बरखा कर देलक   कि जीते जी हम मर गइली।    सब कुछ बह गेल।   सपना चकनाचूर हो गेल।   खेत के सोनवा   पल भर में मिट्टी भेय गेल। किसान छाती पीटऽ हथ   लाडो बेटी के गोदी में बइठा के।   बोलऽ हथ—   लाडो बेटिया, तोहसे भी वादा कइने रहलीं।   पाँव में पायल पहिरइब।   देहिया ला फ्रॉक और अंगिया किनब। माफ कर देब लाडो बेटिया—   अपन तो एहे बाप हई।   जे कुछ ना कर सकल तोहार खातिर। --- लेखक – कार्तिक कुसुम यादव  भाषा – मगही   व...

छात्रों का अधिकार और आंदोलन की पुकार

शिक्षा, न्याय, रोजगार हक है हमारा।   लाख यातनाएं दो हमें,   लेकर रहेंगे अधिकार हमारा।   अरी ओ पुलिस कप्तान,   तूने जो लाठी चलवाई,   बन गया तू निर्दयी कसाई।   छात्रों की समस्या,   तुझे तनिक भी नजर न आई।   किसने आज्ञा दी तुझे   हम पर लाठी बरसाने की?   जाओ उस निकम्मी सरकार से कह दो   "छात्र आ रहे हैं, सिंहासन खाली करो!"   गुस्से का लहू रगों में दौड़ रहा है।   समर शेष है रण की।  अब आंदोलन का नाद सघन होगा,   गूंजेंगी शहर की सड़के और गलियां।   इंकलाब! इंकलाब! इंकलाब की बोलियां। अरे, बनकर निकलेगी जब सड़कों पर   अलग-अलग छात्रों की टोलियां।   ओ पुलिस! तेरी बंदूकें धरी की धरी रह जाएंगी,   कुछ न बिगाड़ पाएंगी गोलियां।   अभी भी वक्त है,   छात्रों का हृदय विशाल है।  जाओ, हमारी मांगों का संदेशा   उस कुंभकर्णी नींद में सोई सरकार तक पहुंचाओ।   कहना—   याचक नहीं हूं,...

नयना तोर निरखत

नयना तोर निरखत, सपना देखत, सुघर रूपवा, गोरी तोर चमकत। बलखत केशिया, जान मारे हमरा, तोर बिना हम हियो अधूरा। सूरतिया बस गइल जब से दिल में, मन न लागे हमरा कोनो महफिल में। ई दिलवा तो दीवाना हो रानी, तोहर प्यार में । बाटियां निहारो हियो, तोरे इंतजार में। जे दिन तोर मिलन न होई, ओ दिन मनवा खूबे रोई। तोहर याद में बइठल रहि जाई, अँखियन में तैरै तोरे छविया। मन में ऊ चेहरा, बेरी-बेरी आवे, ऊ सुघर रूपवा, केतना सतावे। नील नयनवा तोर, नशा करावे, ऊपर से चश्मा, जान मार जाए। देहिया के अंगिया, नेहिया बढ़ावे, हमर सपनवा में बस तू ही आवे। मन न लागे एको पहर तोर बिन, रतिया कटे अब तारे गिन गिन। मन करे प्रेम के पंछी बन उड़ जियो, तोहर अटारिया पे आ के बइठी जियो। दिलवा के बतीयां तोहरे बतिईयों। केतना प्यार बा हमर दिल में एक पल बता दी तोह से मिल के। नयना तोर निरखत, सपना देखत, सुघर रूपवा, गोरी तोर चमकत। ✍️ रचनाकार: कार्तिक कुसुम