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"टूटल सपना, भींजल खेत"

सोनवा नियन गेहुआं,  
सोनवा नियन खेत।  
देखी के किसान के  
भर गेल हले पेट।

नरम-नरम हथिया से सहलउलकी,  
प्यार से गेहुआं के बाली।  
सुघ्घर गेहुआं देख के,  
हम सपना लगलीं पाली।

सोचलीं–  
ए साल गेहुआं बेच के  
छोटका के सहर पढ़ई भेजब।  
स्कूल में नाम लिखइब।  

ओही पइसा से  
छोटका ला जूता-चप्पल किनब।  
पढ़ाई करईब, बड़ आदमी बनइब।

बाकी विधाता ऐसन बरखा कर देलक  
कि जीते जी हम मर गइली।
  
सब कुछ बह गेल।  
सपना चकनाचूर हो गेल।  
खेत के सोनवा  
पल भर में मिट्टी भेय गेल।

किसान छाती पीटऽ हथ  
लाडो बेटी के गोदी में बइठा के।  

बोलऽ हथ—  
लाडो बेटिया, तोहसे भी वादा कइने रहलीं।  
पाँव में पायल पहिरइब।  
देहिया ला फ्रॉक और अंगिया किनब।

माफ कर देब लाडो बेटिया—  
अपन तो एहे बाप हई।  
जे कुछ ना कर सकल तोहार खातिर।

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लेखक – कार्तिक कुसुम यादव 
भाषा – मगही  
विषय – ग्रामीण जीवन, किसान की पीड़ा, टूटते सपने

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