शाम को छोटी पहाड़ी पर
✍️Kartik Kusum
फुर्सत के समय बिताने गए
इन छोटी पहाड़ी की चोटी पर
बैठ निगाहें दौड़ाने लगे
प्राकृतिक सौंदर्य की गोदी में बैठा
कितनी सुख प्राप्त हो रही थी मुझे
तेजी से मैं दूर -दूर तक निगाहें दौड़ाए
मेरा चक्षु भी प्यासा और व्याकुल था
प्राकृतिक की हर सुंदर मनोरम दृश्यों को देखने को
कभी हरे-भरे लहलहाते फसलों पर
कभी बगल की तालाब में तैरते हंसों पर
कभी सूर्य की चमकती किरणें, नदियों की नीर पर
कभी उजले व्योम में उड़ते पक्षियों पर
कभी गिलहरियों की वृक्षों पर चढ़ने -उतरने की क्रीडा पर
पास खेल के मैदानों में बच्चों की शोरगुल पर
मेरा मन प्रफुल्लित हो गया
प्राकृतिक कि इस छटा को देखकर
मेरी शरीर की व्याधि खत्म हो गई
मेरा ह्रदय बाग-बाग हो गया
जब शाम को छोटी पहाड़ी पर
फुर्सत के समय बिताने गए।
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