जब जन्म लिए बेटी घर में
घर वालों को क्यों चोट लगे जिगर में
जब करना चाहे कुछ जीवन में
लोग पत्थर बन जाते उनके डगर में
मौका दो उसे जीवन में
सीढियां लगा देगी अंबर में
तोड़ लेगी आसमान के तारे
उनके कदम चूमेंगे जहां सारे
फिर वह बेटी होगी एक अबूझ कहानी
समाज में भर देगी अपने गुणों की पानि
जरा सोचो दुनिया वाले
अगर जन्म ना ले बेटी
कौन बनेगी समाज की ज्योति
किसे बांधोगे दो बालों की चोटी
दादी मां बनकर कौन सुनाएगी लोरी
आंगन में खाट पर लेटी
✍️Kartik Kusum
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