हर शाम एक पंछी मेरे छत पर आकर
अपने स्वर में मीठी-मीठी गीत सुनाकर
मुझसे कुछ चाहता है
मुझसे कुछ मांगता हैं
कुछ देना चाहूंगा उसे तो
झट से उड़ जाता है
शायद डर है उन्हें मुझसे
दाने डालकर पकड़ना ले
दूर से ही अपनी चोंच में
दाना दबाना चाहता है
कोशिशें है हिम्मत जुटाने की
चुगने कि इन सब दानों की
कोशिशें हैं इधर मेरी भी
दाने चुनते समय तस्वीर लेने की
कैमरे लगाए बैठे हूं चुपके
उन्हें लगता गुलेल लगाए बैठे हैं कोई
देख मुझे फुर से उड़ जाता कोसों दूर
मैं सोचता कैसे मनाऊं
कैसे समझाऊं इस नादान परिंदे को
कैसे लूं तस्वीर इनकी
है बस ये कोशिशें ये मेरी अब
✍️Kartik Kusum
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