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छात्रों का अधिकार और आंदोलन की पुकार

शिक्षा, न्याय, रोजगार
हक है हमारा।  
लाख यातनाएं दो हमें,  
लेकर रहेंगे अधिकार हमारा।  

अरी ओ पुलिस कप्तान,  
तूने जो लाठी चलवाई,  
बन गया तू निर्दयी कसाई।  
छात्रों की समस्या,  
तुझे तनिक भी नजर न आई।  

किसने आज्ञा दी तुझे  
हम पर लाठी बरसाने की?  
जाओ उस निकम्मी सरकार से कह दो  
"छात्र आ रहे हैं, सिंहासन खाली करो!"  

गुस्से का लहू रगों में दौड़ रहा है।  
समर शेष है रण की। 

अब आंदोलन का नाद सघन होगा,  
गूंजेंगी शहर की सड़के और गलियां।  
इंकलाब! इंकलाब! इंकलाब की बोलियां।

अरे, बनकर निकलेगी जब सड़कों पर  
अलग-अलग छात्रों की टोलियां।  
ओ पुलिस! तेरी बंदूकें धरी की धरी रह जाएंगी,  
कुछ न बिगाड़ पाएंगी गोलियां।  

अभी भी वक्त है,  
छात्रों का हृदय विशाल है। 
जाओ, हमारी मांगों का संदेशा  
उस कुंभकर्णी नींद में सोई सरकार तक पहुंचाओ।  

कहना—  
याचक नहीं हूं,  
अधिकार के लिए लड़ रहा हूं।  
गुस्सा नहीं, प्यार से कह रहा हूं।  

जो भ्रष्टाचार हुआ है शिक्षा में,  
जो प्रश्नपत्र बाहर हुए परीक्षा में,  
उन्हें वापस लो।  
हां, उन्हें वापस लो! 

यह आवाज़ दबाई नहीं जा सकती।  
यह संघर्ष रुकेगा नहीं।  
हम छात्रों का अधिकार ,  
इसे लेकर रहेंगे।  

✍️ Kartik Kusum Yadav 

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