यह कैसा पंच परमेश्वर ? जिसमें न हो सत्य का स्वर उनकी बात सुनो तो, बाते करता धरा से अम्बर । नीति व नियति का ज्ञान नहीं नैतिकता, रत्ती भर नहीं आदर्श-मर्यादा को ठुकराकर अपने वचनों को ठहराहटा सही। यह कैसे पंच परमेश्वर जिसमे न हो सत्य का स्वर खुद की तारीफो में कसीदे पढ़ते कितने झगड़े को सुलझाया यू ही, मैं पलक झपकते । वो अपनी अतीत की दुनिया से, सबको रूबरू कराता। महज सौलह वर्ष का रहा होगा न्याय वेदी का प्रतिमूर्ति कहलाता। इतने दिव्य गुणों से सुशोभित क्यों नहीं रखते प्रियजानो से मीत ? कभी तो अपने उर, टटोलकर देख। या पढ़ प्रेमचंद्र रचित, अलगू चौधरी और जुम्मन शेख। असली पंच परमेश्वर से साक्षात्कार होगा तेरे अधरो पर न्याय का स्वर आएगा। हे दुनिया-जहान के न्याय देवता तेरे घर में भी नहीं है एकता। आपके कौशल और चातुर्य अपनो के न्याय में क्यों पड़ जाती हैं शिथिलता । यह सब देख मुझे, होती हैं हैरानी और कौतुहलता। संपत्ति की इतनी लोभ दुर्गति होगी, करो जरा तुम क्षोभ कैसे समाज गढ़ना चाहते हो ? सिर्फ संपत्ति ठगने की चाह रखते हो। वो दिवस आज भी याद...