दूर क्षितिज पूरब से
लालिमा छाई ।
प्रकट हुए सूर्यदेव
जगत में चर-अचर
और खग गाई।
लाल किरण की प्रस्फुटन से
वनस्पतियों ने ली अंगड़ाई।
गुलजार हुआ जग सारा
लागे यह जहां न्यारा
उषा की वेला में
निकला जब, घर से अकेला
पक्षियों का कलरव
था कितना अलबेला
मंद -मंद समीर के झोंके
कितना सुंदर वो भोर के मौके
हर रोज बरबस ही,
खिंचा चला जाता हूं।
ताल -से -ताल मिलाता हूं
उस चिरैया के गायन से
कितना मनहर लागे
फुदक -फुदक कर,
जब अपनी गान सुनाएं
साथ कूके वन मे कोयलया
सुन के सुहावन लागे ओकर बोलिया
कागा अटारी पर चढ़ बोले
पाहुन आने का संदेश सुनावे
प्रकृति के मनोरम दृश्य देखकर
मन मंत्र -मुग्ध हो जाए।
✍️ Kartik Kusum Yadav
Comments
Post a Comment