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बिहार में गरीबी

निर्धनता का अर्थ उस सामाजिक आर्थिक स्थिति से है जिसे समाज का एक भाग जीवन स्वास्थ्य एवं दक्षता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं को जुटाने में असमर्थ होता है। जो समाज का बहुत बड़ा भाग न्यूनतम जीवन स्तर से वंचित होकर केवल निर्वाह स्तर पर गुजारा करता है तो इसे व्यापक निर्धनता (Mass Poverty) कहा जाता है। भारत सहित तीसरी दुनिया के देशों में ऐसी ही निर्धनता पाई जाती है। निर्धनता की गणना सापेक्ष एवं निरपेक्ष दोनों रूपों में की जाती है। सापेक्ष दृष्टि से निर्धनता का मापन विभिन्न वर्गों/देशों के निर्वाह स्तर की तुलना करके की जाती है। निर्वाह स्तर का अर्थ है। आय उपभोग व्यय निरपेक्ष दृष्टि से निर्धनता मापन में निर्वाह की न्यूनतम जरूरतों भोजन, वस्त्र, कैलोरी, आवास आदि को रखा जाता है। जिन्हें यह न्यूनतम चीजें भी उपलब्ध नहीं होती है, उन्हें गरीब कहा जाता है।
बिहार में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की सामाजिक अधिकारिता एवं रोजगार मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार 39.3% है। राज्य में रोजगार का निम्न स्तर और मजदूरी की निम्न दर है। बिहार में गरीबी का स्वरूप अन्य विकसित प्रदेशों के अपेक्षाकृत भिन्न है। यहां अधिकतर गरीबी व्यक्ति अकुशल मजदूर हैं, जो कृषि कार्य पर रोजगार के लिए आश्रित है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे रोजगारउन्मुखी योजनाएं भ्रष्टाचार एवं नौकरशाही की उदासीनता के कारण प्रभावी रूप से लागू नहीं की जा सकी है। इससे साधनों की बर्बादी हुई है और सरकार पर अनावश्यक बोझ बढ़ा है।
                राज्य में ग्रामीण विकास एवं रोजगार कार्यक्रमों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। ऐसी योजनाएं जो पूर्णता राज्य योजना द्वारा वित्त पोषित है, जैसे प्रधानमंत्री रोजगार योजना इत्यादि।
          बिहार में गरीबी के आर्थिक कारणों में व्यापक बेरोजगारी तथा अल्प बेरोजगारी के साथ उत्पादक रोजगार का अभाव,
परिसंपत्तियों का अभाव एवं मूल्य की वृद्धि की तुलना में आय में कम वृद्धि तथा पूंजी एवं कौशल का अभाव जिससे उत्पन्न गरीबी तथा गरीबी का दुष्चक्र को शामिल किया जाता है। बिहार में प्रति व्यक्ति कम आय, व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा का अभाव तथा उपक्रम की कमी। के साथ कृषि एवं उद्योगों में निम्न उत्पादकता स्तर। निम्न स्तरीय आर्थिक गतिविधियों में संलग्नता, निम्न मजदूरी दर, श्रम संसाधन तकनीकी/उपक्रमों की जगह पूंजीगत तकनीक/उपक्रमों का अपनाया जाना तथा वैकल्पिक व्यवसाय के अभाव में कृषि पर भार अधिक।
       बिहार में गरीबी को कम करने के लिए समन्वित ग्राम विकास कार्य (IRDP) जो अब स्वर्ण जयंती ग्राम योजना स्वरोजगार योजना प्रारंभ की गई जिसके अंतर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली, समन्वित बाल विकास एवं स्कूलों में मध्य दिवसीय भोजन योजना प्रारंभ किया गया। निर्धनता उन्मूलन के लिए इंदिरा गांधी आवास योजना की शुरुआत 1985 में की गई। इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्र में विकास करने वाले गरीबों को आवास निर्माण करने हेतु मैदानी क्षेत्रों में ₹70,000 तथा पहाड़ी क्षेत्रों में ₹75,000 दिए जाते है। इस योजना में केंद्र एवं राज्य का हिस्सा 3:1 का है। तथा स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए चलाई गई है। इस योजना का उद्देश्य बैंक ऋण तथा सरकारी सब्सिडी के मेल से आए सृजित करने हेतु संपत्ति प्रदान करके यह सुनिश्चित करना है कि सहायता प्राप्त परिवार को कम से कम निवाल मासिक आय ₹2,000 हो ताकि उसे गरीबी रेखा से ऊपर लाया जा सके। यह केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में क्रियान्वित की जाती है।
    बिहार सरकार के द्वारा प्रारंभ की गई सामाजिक सुरक्षा योजना मजदूर वर्ग के लोगों के लिए प्रारंभ की गई है। इस योजना से राज्य में निवास करने वाले रिक्शा चालक, घरेलू नौकर, ठेला चालक, दर्जी, बढ़ाई, लोहार, बुनकर सहित असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को लाभ प्राप्त होगा। जिसके अंतर्गत प्राकृतिक रूप से मृत्यु होने पर इस वर्ग के परिजनों को ₹ 30,000 दिए जाते। दुर्घटना में मौत होने पर ₹ 1 लाख सहयातार्थ मिलते। स्थाई रूप से दिव्यांग होने की स्थिति में ₹ 75,000 देने का प्रावधान है। इस वर्ग के वैसे बच्चों को जो 9वीं से 12वीं कक्षा में पढ़ रहे हो, उन्हें प्रतिमा ₹100 की आर्थिक सहायता दी जा रही है। दुर्घटना की स्थिति में घायलों के इलाज हेतु ₹5000 दिए जाते हैं तथा महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए महिला विकास निगम का गठन 21 जून 1990 को राज्य स्तर पर महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु किया गया था। इस योजना के तहत महिला विकास निगम द्वारा चयनित महिलाओं के प्रशिक्षण हेतु किसी प्रशिक्षण संस्थान को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी ताकि निर्धारित समय सीमा के अंदर इन्हें प्रशिक्षित कर सरकारी व गैर सरकारी सेवा के लिए योग्य बनाया जा सके। सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में कार्य करते हुए समाज की पीड़ित महिलाओं को मनोवैज्ञानिक परामर्श, कानूनी सहायता तथा पुनर्वास के उद्देश्य राज्य के सभी 38 जिलों में हेल्पलाइन योजना शुरू करने का प्रस्ताव है। वर्तमान समय में राज्य के 34 जिलों में यह हेल्पलाइन योजना कार्यरत है। घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य राज्य के 27 जिलों में अल्पावास गृह कार्यरत हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास योजना के तहत, इस योजना के प्रथम चरण में 20 कामकाजी महिला छात्रावास स्थापित करने का प्रस्ताव है।
                  

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