एक समय था पत्रकारिता का।
पत्रकार की कलम में ,
ताकत हुआ करता था
कलम से लिखा गया
एक -एक शब्द
राजनेताओं -अधिकारियों के
कुर्सी हिला देता था।
एक -एक शब्द तीर के समान चुभती
लाख खरीददार होने के बावजूद
उस समय की पत्रकारिता बीके नहीं बिकती
जब देश गुलामी के जंजीरों में जकड़ा था
अंग्रेजी हुकूमत के पांव उखाड़ने में
पत्रकारिता का अहम भूमिका था
आज डिजिटल युग के
तथाकथित पत्रकार
जिसकी लगी है, लंबी कतार
दूर-दूर तक न है,
पत्रकारिता से नाता
पत्रकारिता की आड़ में
सिर्फ धौंस जमाता
पत्रकार बने घूमे फिरते हैं
गांव -गली मोहल्ले
सच कहे तो इनको
पत्रकारिता का अर्थ नहीं पता
जिस कारण ही दिन -प्रतिदिन
पत्रकारिता की छवि धूमिल हुई
लोगो का भरोसा
पत्रकारिता पर कम हुई।
आए दिन समाचार पत्रों में
खबरें छपती है।
अमुक पत्रकार ,
किसी के साथ ब्लैकमेल किया
ऐसी सुर्खियां लगती है।
अपनी धाक जमाने के लिए
गाड़ी पर प्रेस लिखाए
गाड़ी पर नंबर की जरूरत नहीं
हेलमेट न पहने कोई बात नहीं
अगर कोई पुलिस रोके
तो उस पुलिस की खैर नहीं।
मानो सारे नियम -कानून
इनके लिए शून्य हुए।
नेता हो,अधिकारी या पुलिस,
सभी इनके मुरीद हुए
अवैध कारोबारियों,भ्रष्टाचारियों से,
करें हफ्ता वसूल।
अपनी जेबों को भरकर ऐश -अराम
यही है इनकी पत्रकारिता की उसूल
खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते।
समाज के सामने,
भ्रष्टाचार मिटाने का ढिंढोरा पीटते
मानो यही सच्चे पत्रकार
कुछ तथाकथित पत्रकार तो हद करते
सच्चे ईमानदार अधिकारियों के
चैन - सुकून तक छीन लेते
ऐसे लोग ही जनता में
सच्चे पत्रकारों की छवि धूमिल करते
कुछ युवाओं ने तो,
पत्रकारिता एक शौक समझ लिया
जबकि, पत्रकारिता एक क्षेत्र ऐसा
जिसे न हर कोई कर सकता
न ही हर किसी की बूते की बात
पत्रकारिता हर दौर में एक चुनौती
आज भले ही मीडिया क्रांति का हो दौर
पत्रकारिता आज भी है, कठिन -कठोर
एक पत्रकार और उसकी पत्रकारिता
अपनी कठिन मेहनत से ही।
समाज में घटित घटनाओं से रूबरू कराता
माध्यम टेलीविजन हो या अखबार
सच्चे पत्रकार का आज भी है इज़्जत-सत्कार
परंतु आज हद तो यह है
अपराधिक मानसिकता के व्यक्ति
निकाली पत्रकारिता की उक्ति
अपने कारोबार को संरक्षण के लिए
पत्रकारिता में प्रवेश किए
भ्रष्टाचार, अन्याय बढ़ा
लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन कमजोर हुए
समाज का आईना है पत्रकारिता
समाज की अच्छाई - बुराई को दिखाता
अगर पत्रकार बुराई को प्रश्रय देगा
अच्छाई समाज में कैसे उदय होगा
एक दौर हुआ करता था
पत्रकार अपनी कलम की लेखनी से
सामाजिक हित की बाते किया करता था
उनके कलम ने,
कितने बड़े आंदोलनों का जन्म दिया
लेकिन आज स्थितियां बदल गई
पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हुई
जिस कारण ही,
पत्रकारिता का स्तर गिरी।
समाज में कठिन समस्याओं पर
अपनी लेखनी से सरकार को चेताते
समाज में व्याप्त समस्या
समय पर निवारण हो जाते
देश के चौथे स्तंभ को
बचाने के लिए चिंतन है जरूरी ।
✍️ Kartik Kusum Yadav
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