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चिड़ियां और मजदूर

चिड़िया गा रही है खेतों की मेड़ पर
गीत वह गा रही मजदूरों पर
ए मजदूर फसल काटने वाले
व्यथा मेरी जरा तू सुनना
सारा फसल तू काटना
पर उनके बाली न चुनना
शेष बचेंगे वह मेरे लिए अन्न
सारा फसल ले जाने पर
मैं उनका स्वाद चखऊंगा
चोच में दबा ले घोसले में
अगर तू उसे भी ले जाएंगे
अन्न तलाश में भटक मर जाएंगे
मेरे ऊपर यही उपकार करना
सारा फसल तू काटना
पर उनके बाली ना चुनना

सुन मजदूर उनकी गीत
उनके मन में भी आई संगीत
एक छोटी चिड़िया तू भी
सुनना व्यथा मेरी भी
मैं हूं मालिक की दासा
मैं भी रहता हूं हरदम
तुम्हारी तरह भूखा प्यासा
मैं इन्हें ले जाकर
खलिहान के ऊपर लगाऊंगा ढेर
बदले में मिलेंगे अन्न मुझे सैर दो सैर
आना तू खलियानों पर
खाना बैठ लगे ढेरों पर
चिड़िया ने फिर गाकर बोली
ना ना मैं ना आऊंगी
तेरी बातों में मैं ना भर्मआऊंगी
सुना है तेरा मालिक है कंजूस
दाने की लालच देकर
मुझे पकड़ लेगा वह कंजूस
हम पिंजर बंद हो जाएंगे
सारा चैन मुझसे छीन जाएगा
मेरी दुनिया सिमट कर
उस पिंजरे में बंद हो जाएंगे
फिर इस नील गगन में 
उड़ने की परिकल्पना सिर्फ स्वप्न होगी
उस झर- झर कर झरने वाली निर्झरिणी
का नीर चखना स्वप्न होगी
नहीं- नहीं मैं तेरी बातों में ना आऊंगी
इससे भली में भूखे ही रह जाऊंगी।


✍️Kartik Kusum

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