बिहार प्रदेश की गौरवशाली परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में पटना कलम चित्रकला का उच्च स्थान है। मध्यकालीन बिहार में पटना कलम चित्रकला ने बिहार के कला क्षेत्र को काफी समृद्ध किया। पटना कलम चित्रकला का विकास मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उत्पन्न परिस्थितियों में हुआ। औरंगजेब द्वारा राज दरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नबाव के यहां आश्रय लिया इससे कला के विभिन्न क्षेत्रीय रूप उभरे जिनमें पटना शैली प्रमुख है। इस शैली का विकास 18वीं सदी के मध्य से लेकर बीसवीं सदी के आरंभ तक हुआ।
इस शैली पर एक ओर मुग़लशाही शैली का प्रभाव है तो दूसरी और तत्कालीन ब्रिटिश कला का भी प्रभाव है। इसके अतिरिक्त इसमें स्थानीय विशिष्टताएं भी स्पष्ट है। मुगल तत्व, स्थानीय भारतीय तत्व एवं यूरोपीय तत्वों के सम्मिश्रण के कारण इस शैली की अलग पहचान बनी है। तत्कालीन नवधनाढ्य भारतीय एवं ब्रिटिश कलाप्रेमी इस कला के संरक्षक और खरीददार थे।
पटना कलम के चित्र लघु चित्र की श्रेणी में आते हैं। जिन्हें अधिकतर कागज एवं कहीं-कहीं हाथी दांत पर बनाया गया है। इस शैली का मुख्य विषय जनसाधारण के सामान्य जीवन को बनाया गया है। इसमें परंपरागत भारतीय जीवन शैली की अभिव्यक्ति हुई है। इस शैली के चित्रों में सामान्य रूप से लकड़ी काटता हुआ बढ़ाई, मछली बेचती हुई औरत, त्योहारों सुनार ,एक्का वाला, रंगरेज , पालकी उठाए हुए कहार, खेत जोतता हुआ किसान साधु सन्यासी को चित्रित किया गया है। कुछ चित्र चमड़ा धातु तथा शीशे पर भी उकेरे गए हैं।
पटना कलम के चित्रकारों को बारीकी एवं अलंकरण में महारत हासिल था। इस शैली के चित्रों में चिड़ियों का चित्रण खास तौर पर देखने योग्य है। इन चित्रों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इन कलाकारों को पंछियों के शरीर विज्ञान की गहन जानकारी थी।
इस शैली के चित्रों में पृष्ठभूमि एवं लैंडस्केप का कम प्रयोग हुआ है। मनुष्य के चित्रों में ऊंची नाक भारी भवे, पतले चेहरे, गहरी आंखें और पुरुषों की घनी मुछे दिखाई गई है। तस्वीरों को बनाने में पेंसिल से खाका बना कर रंग भरने के बदले ब्रश से ही तस्वीर बनाने और रंगने का काम हुआ है। चित्रों में अधिकतर गहरे भूरे, गोहरे लाल, हल्के पीले, और गहरे नीले, रंगों का प्रयोग हुआ है। पटना कलम शैली के कुछ चित्रकारों ने अपनी कल्पनाओं को भी चित्रित किया है जैसे - महादेव लाल की नायिका का बिरह अवसाद का चित्रण, शिवलाल द्वारा चित्रित मुस्लिम निकाह आदि।
मुगल दरबार की शाही शैली से पटना कलम कई आधार पर भिन्नता रखता है। पटना शैली के चित्रों में सजीवता का और सामान्य जीवन से इसका घनिष्ठ संबंध सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है जो अन्य शैली के चित्रों में नहीं पाया जाता है। इसके अलावा रंगों के उपयोग एवं छायांकन के तरीकों में भी स्पष्ट अंतर है।
पटना शैली के महत्वपूर्ण कलाकारों में पहला नाम सेवकराम का आता है जिनका काल 1770 ई० से 1830 ईसवी के बीच रहा। इसके अलावा आरंभिक चित्रकारों में लाल सलाम 1785 से 1885 का नाम भी काफी महत्वपूर्ण है। इनके प्रसिद्ध चित्रों में हिंदू त्योहारों जैसे होली और दिवाली के चित्र दर्शाए गए हैं इस शैली के अन्य चित्रकारों में जयराम दास शिवदयाल लाल गुरु सहाय आदि का नाम महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है। इस क्रम में ईश्वरी प्रसाद का अंतिम महत्वपूर्ण चित्रकार थे। इस कला शैली के पार की राधा मोहन बाबू को पोट्रेट की सर्जना का आचार्य कहा जाता है। पटना कलम शैली के आखिरी संरक्षक राधा मोहन बाबू की मृत्यु 1997 ईस्वी में हुई। इस शैली के चित्रों का संग्रह खुदा बख्श लाइब्रेरी पटना म्यूजियम में है ।
पटना कलम शैली के महत्वपूर्ण चित्र -
1. रागिनी गंधारी - महादेव लाल कृत - नायिका के बिरह के अवसाद का चित्रण
2. वीरहनी नायिका का वीणा लिए चित्र - माधोलाल कृत - रागिनी तोड़ी पर आधारित।
3. मुस्लिम निकाह का चित्र - शिवदयाल लाल कृत।
4. बेगम ओ की शराब खोरी का चित्र - यमुना प्रसाद कृत।
ईश्वरी प्रसाद जो इस शैली के अंतिम चित्रकार थे, उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र कोलकाता को बनाया। इस तरह पटना कलम की अमृत्वाहिनी धारा तीन सदियों तक प्रभावित होकर कोलकाता की तरफ मुड़ गई। यही कारण है की रविंद्रनाथ टैगोर एवं अबनींद्रनाथ ठाकुर जैसे कलाकारों की शैली पर पटना शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।
इस प्रकार पटना कलम शैली के चित्रों की महत्ता आज भी है और बिहार की गौरवशाली कला परंपरा का यह अमूल्य धरोहर है।
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