Skip to main content

संथाल विद्रोह (1855-56)

 संथाल विद्रोह  में सबसे प्रमुख था 1855-56 ई० का विद्रोह।
संथाल पूर्वी बिहार के भागलपुर से राजमहल तक के क्षेत्र में निवास करते आ रहे थे। इस क्षेत्र को ' दमन ए कोह ' कहा जाता था। क्षेत्र की जमीन को काफी मेहनत से उपजाऊ और कृषि योग्य बनाकर वह यहां झूम एवं पंडू विधि से कृषि किया करते थे। इस कारण जमीन से उनका भावनात्मक संबंध बन चुका था। संथालो का अपना धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा भी था। 
ब्रिटिश शासन की शुरुआत ने उनके जीवन को तहस-नहस कर दिया। उनके सरदारों को जमींदारों का दर्जा देकर लगान की नई व्यवस्था लागू कर दी गई। संथालो द्वारा उत्पादित प्रत्येक वस्तु पर कर आरोपित कर दिया गया। कर वसूली के लिए उतरी बिहार के लोगों की नियुक्ति की गई। समय पर लगान न देने के कारण उनकी जमीन नीलाम की जाने लगी। इस स्थिति से बचने के लिए संथाल महाजनों और साहूकारों पर आश्रित होते चले गए। यह महाजन कर्ज के बदले संथाल बहू बेटियों की आबरू लूटने की कोशिश तक करने लगे। इस स्थिति में पुलिस और न्यायालय ने भी संस्थानों का साथ नहीं दिया। इस तरह यह लोग औपनिवेशिक  अर्थव्यवस्था के जाल में फंस गए। परिणाम स्वरूप उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना।
सरकार ने भागलपुर से  वर्धमान के बीच रेल परियोजना को क्रियान्वित करना चाहा। संथालो से बेगाही लिया जाने लगा। असंतोष का यह दूसरा कारण था। संकट उस समय और गहरा गया जब स्थानीय साहूकारों ने दरोगा की सहायता से मामूली चोरी के अपराध में संथालो को गिरफ्तार करवा दिया। आवेश में एक संभाल द्वारा दरोगा की हत्या कर दी गई। 30 जून, 1855 को भगनाडीह में 400 गांवों के करीब 6000 संथाल एकत्रित हो गए और सब ने विद्रोह का निर्णय लिया। विद्रोह का मुख्य उद्देश्य था - बाहरी लोगों को भगाना, अंग्रेजों का राज समाप्त करना, एवं धर्म का राज स्थापित करना। उसके नेता थे सिद्धू , कान्हु , चांद एवं भैरव। 
करीब 60,000 संथाल ने मिलकर महाजनों एवं जमींदारों पर हमला करना शुरू किया। साथ ही पुलिस स्टेशन रेलवे स्टेशन एवं डाक ढोने वाली गाड़ियों को जलाया जाने लगा। विद्रोह को दबाने के लिए सेना का सहारा लिया गया। मेजर बारों के नेतृत्व में सेना भेजी गई। प्रारंभिक तौर पर संथालो ने उन्हें करारी मात दी। लेकिन संभालो का प्रतिरोध अधिक दिनों तक नहीं टिक सका। क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। करीब 15,000 संथाल मारे गए। 1855 में सिद्धू पकड़ा गया और मार डाला गया। 18 सो 56 में कान्हू की भी गिरफ्तारी हुई।

असफलता के कारण :- विद्रोह एक सशस्त्र क्रांति के रूप में प्रकट हुआ था, लेकिन विद्रोहियों के हथियार परंपरागत एवं दकियानूसी थे जबकि ब्रिटिश सेना अत्याधुनिक हथियारों से लैस थी। इस स्थिति में संथालों का प्रतिरोध बहुत समय तक नहीं टिक सकता था। इस आंदोलन का दायरा भी सीमित था। यह एक स्थानीय आंदोलन बनकर रह गया। अतः आंदोलन असफल रहा। संतानों को ब्रिटिश सत्ता के साथ ही गैर- आदिवासियों से भी जूझना था। इस कारण संथाल विद्रोह में अलग-थलग पड़ते गए और अंत में विद्रोह का दमन हुआ।

परिणाम :- सरकार ने संथाल बहुल क्षेत्र के लिए प्रशासन की विशेष पद्धति के अधीन भागलपुर एवं बीरभूम से कुछ क्षेत्रों को काटकर संथाल परगना जिला बनाया। पुणे संथाल परगना टिनेंसी अधिनियम बनाया गया। ग्राम प्रधान को मान्यता दी गई और ग्रामीण अधिकारियों को पुलिस का अधिकार दिया गया। सरकार ने यह सारे ही उपाय संस्थानों से संवाद हिंसा की स्थिति को खत्म करने के लिए किए।

Comments

Popular posts from this blog

"टूटल सपना, भींजल खेत"

सोनवा नियन गेहुआं,   सोनवा नियन खेत।   देखी के किसान के   भर गेल हले पेट। नरम-नरम हथिया से सहलउलकी,   प्यार से गेहुआं के बाली।   सुघ्घर गेहुआं देख के,   हम सपना लगलीं पाली। सोचलीं–   ए साल गेहुआं बेच के   छोटका के सहर पढ़ई भेजब।   स्कूल में नाम लिखइब।   ओही पइसा से   छोटका ला जूता-चप्पल किनब।   पढ़ाई करईब, बड़ आदमी बनइब। बाकी विधाता ऐसन बरखा कर देलक   कि जीते जी हम मर गइली।    सब कुछ बह गेल।   सपना चकनाचूर हो गेल।   खेत के सोनवा   पल भर में मिट्टी भेय गेल। किसान छाती पीटऽ हथ   लाडो बेटी के गोदी में बइठा के।   बोलऽ हथ—   लाडो बेटिया, तोहसे भी वादा कइने रहलीं।   पाँव में पायल पहिरइब।   देहिया ला फ्रॉक और अंगिया किनब। माफ कर देब लाडो बेटिया—   अपन तो एहे बाप हई।   जे कुछ ना कर सकल तोहार खातिर। --- लेखक – कार्तिक कुसुम यादव  भाषा – मगही   व...

छात्रों का अधिकार और आंदोलन की पुकार

शिक्षा, न्याय, रोजगार हक है हमारा।   लाख यातनाएं दो हमें,   लेकर रहेंगे अधिकार हमारा।   अरी ओ पुलिस कप्तान,   तूने जो लाठी चलवाई,   बन गया तू निर्दयी कसाई।   छात्रों की समस्या,   तुझे तनिक भी नजर न आई।   किसने आज्ञा दी तुझे   हम पर लाठी बरसाने की?   जाओ उस निकम्मी सरकार से कह दो   "छात्र आ रहे हैं, सिंहासन खाली करो!"   गुस्से का लहू रगों में दौड़ रहा है।   समर शेष है रण की।  अब आंदोलन का नाद सघन होगा,   गूंजेंगी शहर की सड़के और गलियां।   इंकलाब! इंकलाब! इंकलाब की बोलियां। अरे, बनकर निकलेगी जब सड़कों पर   अलग-अलग छात्रों की टोलियां।   ओ पुलिस! तेरी बंदूकें धरी की धरी रह जाएंगी,   कुछ न बिगाड़ पाएंगी गोलियां।   अभी भी वक्त है,   छात्रों का हृदय विशाल है।  जाओ, हमारी मांगों का संदेशा   उस कुंभकर्णी नींद में सोई सरकार तक पहुंचाओ।   कहना—   याचक नहीं हूं,...

नयना तोर निरखत

नयना तोर निरखत, सपना देखत, सुघर रूपवा, गोरी तोर चमकत। बलखत केशिया, जान मारे हमरा, तोर बिना हम हियो अधूरा। सूरतिया बस गइल जब से दिल में, मन न लागे हमरा कोनो महफिल में। ई दिलवा तो दीवाना हो रानी, तोहर प्यार में । बाटियां निहारो हियो, तोरे इंतजार में। जे दिन तोर मिलन न होई, ओ दिन मनवा खूबे रोई। तोहर याद में बइठल रहि जाई, अँखियन में तैरै तोरे छविया। मन में ऊ चेहरा, बेरी-बेरी आवे, ऊ सुघर रूपवा, केतना सतावे। नील नयनवा तोर, नशा करावे, ऊपर से चश्मा, जान मार जाए। देहिया के अंगिया, नेहिया बढ़ावे, हमर सपनवा में बस तू ही आवे। मन न लागे एको पहर तोर बिन, रतिया कटे अब तारे गिन गिन। मन करे प्रेम के पंछी बन उड़ जियो, तोहर अटारिया पे आ के बइठी जियो। दिलवा के बतीयां तोहरे बतिईयों। केतना प्यार बा हमर दिल में एक पल बता दी तोह से मिल के। नयना तोर निरखत, सपना देखत, सुघर रूपवा, गोरी तोर चमकत। ✍️ रचनाकार: कार्तिक कुसुम