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कविता, तू कायर है...

तू कायर है तूने अपना परिचय दिया, बदले की भावना में बहकर, दूसरो का सहारा लिया। तुझे लगा कि तू रणनीतिकार है, नहीं रे... तू बेकार है। तू बेकार इतना कि, तुझसे तुलना पंक के कीड़े से करना व्यर्थ। तुझझे नहीं हो पाएगा, तेरे कृत का है यही अर्थ। तुझे क्या लगा? मैं इस तुच्छ चीजों से विचलित हो जाऊंगा, बदले की भावना में बहकर, मैं तुझसे लड़ूंगा। नहीं रे... जो स्वीकार कर लिया हार का, जिसके सामने डाल दिया तू खड़ग, उनके साथ ऐसे कृत्य सुशोभित नहीं। अगर अभी भी है भुजाओं में बल, और रखते हो युद्ध कौशल, तो आ... तुझे ललकार रहा हूं, आमने-सामने की लड़ाई लड़। अगर मां के स्तन का क्षीर पिया हो, तो कर युद्ध निडर। मुझे पता है रे... तेरे रगों में कायरों का खून है। भुजाएं शक्तिहीन हैं। रण की तलवारों की टकराहट सुन, तेरे हृदय का स्पंदन होता शून्य। तू रण के लायक नहीं। तू कायर है रे... तू कायर सही। ✍️ Kartik Kusum Yadav

नदी किनारे देवालय

नदी किनारे देवालय  ऊपर ओढ़े चादर किसलय। फूल-हरि पत्तियां अर्पित  सलिल पांव पखारे। टन-टन बजती घंटियां साधु संत करते आरतियां  वातावरण सुंदर सुहावन लगे मंदिर में जब घंटी बजे गीत सुनाती जल धारा कल-कल कर बहती गाती शांत, सौम्य, मनोरम दृश्य देवालय खींच लाती। ✍️ Kartik Kusum Yadav

जिनगी के असल रंग

युवा लोगन सभे,   इंस्टा पर झूमे,   गावे ला तराना,   देखअ ई कैसन जमाना।   रात-दिन मोबाइल में भुलाइल,   खेलअ-कूदअ त गइल भूल।   घर के कौना में सिमटल जिनिगी,   रंग-बिरंग सपना सभ मिटल।   माटी में खेलल भुलाईल,   जिनिगी जिए के मने भुलाइल।   कैसे समझाईं, ओहके कैसे मनाईं?   ए सुगना, ए बबुआ!   तनी घर से बाहर निकलअ,   खेलअ, कूदअ, दौड़अ धूपअ,   ई खुलल फिजा में विचरअ,   जीवन के असली रंग निहारअ।   खेतवा में सरसों के पियरी,   आपन नयन से तनि देखअ,   अमवा के डाली पर कोयली कूके,   ओकर मधुर तान सुनअ।   फुलवा पर देखअ   कैसे रंग-बिरंग तितली मडरातअ,   सुबह के ललकी किरिनिया,   घासवा पर शबनम के बूंद नया,   देखअ कैसे चमकअ त।   बांस के झुरमुट में   चहके ल चिरइया,   उजर आसमान में उजर बगुला,   देखअ कैसे उड़ रहल ह।   बगिया में दे...

प्रेम और परिवर्तन का संदेश

शक न करअ,   जिद पर न अड़अ,   ई बुरी वला ह।   सपना जे तोहार बा,   मन में जे इरादा बा,   उहो निक न ह।   मन में जे ईर्ष्या बा,   जीवन में ऊहापोह बा,   ओकर कारण तू ही ह।   ई काल चक्र ह जीवन के,   ई नित्य नवीन परिवर्तनशील ह।   तू कहा फसल बाड़नऽ   ई भौतिक वस्तु के मोह-माया में?   ई नश्वर, क्षणभंगुर ह।   एकरा जानअऽ, एकरा मानअऽ।   जिह्वा देलहन भोले बाबा,   त तनी शुभ-शुभ बोलअऽ।   बतइयां करे से पहिले तनीक,   हृदय के तराजू पर तोलअऽ।   अपन अहंकार के त्यागअ$,   प्रेम-दुलार के रंग में रंग जा।   प्रेम में ऐसे डूबअऽ,   जैसे हर जन आपन लागे।   ✍️ Kartik Kusum Yadav

छात्रों का अधिकार और आंदोलन की पुकार

शिक्षा, न्याय, रोजगार हक है हमारा।   लाख यातनाएं दो हमें,   लेकर रहेंगे अधिकार हमारा।   अरी ओ पुलिस कप्तान,   तूने जो लाठी चलवाई,   बन गया तू निर्दयी कसाई।   छात्रों की समस्या,   तुझे तनिक भी नजर न आई।   किसने आज्ञा दी तुझे   हम पर लाठी बरसाने की?   जाओ उस निकम्मी सरकार से कह दो   "छात्र आ रहे हैं, सिंहासन खाली करो!"   गुस्से का लहू रगों में दौड़ रहा है।   समर शेष है रण की।  अब आंदोलन का नाद सघन होगा,   गूंजेंगी शहर की सड़के और गलियां।   इंकलाब! इंकलाब! इंकलाब की बोलियां। अरे, बनकर निकलेगी जब सड़कों पर   अलग-अलग छात्रों की टोलियां।   ओ पुलिस! तेरी बंदूकें धरी की धरी रह जाएंगी,   कुछ न बिगाड़ पाएंगी गोलियां।   अभी भी वक्त है,   छात्रों का हृदय विशाल है।  जाओ, हमारी मांगों का संदेशा   उस कुंभकर्णी नींद में सोई सरकार तक पहुंचाओ।   कहना—   याचक नहीं हूं,...

आत्मबोध का आह्वान

तुझे लड़ना है,   मुझे प्यार बांटना है।   तुझे तोड़ना है,   मुझे जोड़ना है।   तेरी वाणी असभ्य,   मेरी सौम्य और सभ्य।   तू भौतिकता को सर्वोच्च माना,   मेरे लिए तुच्छ जहाँ सारा।   तेरे संस्कार तुझे मुबारक हो,   आओ संवाद करें,   सबकुछ यहाँ बराबर हो।   क्यों रूठे हो एक भूखंड के खातिर?   यह तो किराए का है,   आज तेरी तो कल किसी और की होगी।   अवसर मिला है क्षणिक,   मिलबांट कर उपभोग करो,   यही है इसका गणित।   इतनी बौद्धिकता भी नहीं,   तो तू उपभोग के अधिकारी नहीं।   त्याग करो, वत्स,  लोभ, मोह, मद, मत्स का।   अंगीकार करो, वत्स,   सत्य, न्याय, और सच का।   जिसने इसे स्वीकारा है,   वह फला-फूला और खुद को संवारा है।   जीवन के आखिरी पड़ाव पर सही,   कुछ करो आज और अभी यहीं।   घृणा की धधकती ज्वाला से बाहर निकलो,   अपने कोमल नयन संग मुस्...

नाम देव काम ऐब

नाम देव, काम ऐब   बातों में छल, दिखे फरेब।   देव का अर्थ, देवत्व से भरा,   शब्दों में उसकी, महिमा गहरा।   कैसी विडंबना है इस संसार की,   मनुज का नाम रखा ‘देव’ यहाँ,   मुख से निकले, शब्द अहंकारी,   गर्व से पढ़े, गालियाँ यहाँ।   थू-थू कर सब थूकें उसे,   कहे, "अरे मूर्ख! मत पढ़ गाली।"   संभाल मर्यादा, कर ख़्याल,   ईश्वर से कर, तू एक वादा।   मत कर रसपान गाली का,   रख संजीवनी, वाणी का। ✍️ कार्तिक कुसुम यादव