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जिनगी के असल रंग

युवा लोगन सभे,  
इंस्टा पर झूमे,  
गावे ला तराना,  
देखअ ई कैसन जमाना।  

रात-दिन मोबाइल में भुलाइल,  
खेलअ-कूदअ त गइल भूल।  
घर के कौना में सिमटल जिनिगी,  
रंग-बिरंग सपना सभ मिटल।  

माटी में खेलल भुलाईल,  
जिनिगी जिए के मने भुलाइल।  
कैसे समझाईं, ओहके कैसे मनाईं?  

ए सुगना, ए बबुआ!  
तनी घर से बाहर निकलअ,  
खेलअ, कूदअ, दौड़अ धूपअ,  
ई खुलल फिजा में विचरअ,  
जीवन के असली रंग निहारअ।  

खेतवा में सरसों के पियरी,  
आपन नयन से तनि देखअ,  
अमवा के डाली पर कोयली कूके,  
ओकर मधुर तान सुनअ।  

फुलवा पर देखअ  
कैसे रंग-बिरंग तितली मडरातअ,  
सुबह के ललकी किरिनिया,  
घासवा पर शबनम के बूंद नया,  
देखअ कैसे चमकअ त।  

बांस के झुरमुट में  
चहके ल चिरइया,  
उजर आसमान में उजर बगुला,  
देखअ कैसे उड़ रहल ह।  

बगिया में देखअ  
प्यारी गिलहरी का कुतर रहल ह।  

प्रकृति के गोद में जा,  
खुलल हवा में साँस लऽ,  
देखअ, कैसे जीवन निखर जाई,  
सबकुछ तोहर बदल जाई।  

जियअ जिनिगी के असल रंग में,  
माटी, हरियाली और खुलल गगन में।

✍️ Kartik Kusum Yadav

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