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आत्मबोध का आह्वान

तुझे लड़ना है,   मुझे प्यार बांटना है।   तुझे तोड़ना है,   मुझे जोड़ना है।   तेरी वाणी असभ्य,   मेरी सौम्य और सभ्य।   तू भौतिकता को सर्वोच्च माना,   मेरे लिए तुच्छ जहाँ सारा।   तेरे संस्कार तुझे मुबारक हो,   आओ संवाद करें,   सबकुछ यहाँ बराबर हो।   क्यों रूठे हो एक भूखंड के खातिर?   यह तो किराए का है,   आज तेरी तो कल किसी और की होगी।   अवसर मिला है क्षणिक,   मिलबांट कर उपभोग करो,   यही है इसका गणित।   इतनी बौद्धिकता भी नहीं,   तो तू उपभोग के अधिकारी नहीं।   त्याग करो, वत्स,  लोभ, मोह, मद, मत्स का।   अंगीकार करो, वत्स,   सत्य, न्याय, और सच का।   जिसने इसे स्वीकारा है,   वह फला-फूला और खुद को संवारा है।   जीवन के आखिरी पड़ाव पर सही,   कुछ करो आज और अभी यहीं।   घृणा की धधकती ज्वाला से बाहर निकलो,   अपने कोमल नयन संग मुस्...

नाम देव काम ऐब

नाम देव, काम ऐब   बातों में छल, दिखे फरेब।   देव का अर्थ, देवत्व से भरा,   शब्दों में उसकी, महिमा गहरा।   कैसी विडंबना है इस संसार की,   मनुज का नाम रखा ‘देव’ यहाँ,   मुख से निकले, शब्द अहंकारी,   गर्व से पढ़े, गालियाँ यहाँ।   थू-थू कर सब थूकें उसे,   कहे, "अरे मूर्ख! मत पढ़ गाली।"   संभाल मर्यादा, कर ख़्याल,   ईश्वर से कर, तू एक वादा।   मत कर रसपान गाली का,   रख संजीवनी, वाणी का। ✍️ कार्तिक कुसुम यादव

प्रभु

प्रभु तू हर ले,   काम, क्रोध, वासना को।   प्रभु तू हर ले,   छल, कपट, लोभ तृष्णा को। दिव्य मन, चंचल हो चितवन,   ऐसी वर दे, ऐसा हो तन-मन।   सद मार्ग पर चलकर नित्य,   अर्थपूर्ण हो मेरा कृत्य। प्रीत ऐसी हो वतन से,   खुद को अर्पण कर दूं, वतन पे।   आलस्य, निर्जीवता त्याग कर,   सजीवता का अंगीकार करू। प्रभु के चरणों में,   प्रभु का जय-जयकार करू।   मांगू हर चीज उनसे,   भारत देश के कल्याण का। सत्य, अहिंसा का हो वास,   हर हृदय में हो विश्वास।   धर्म और कर्म की हो साधना,   संविधान की हो आराधना। जन-जन में जगे नई आशा,   सपनों का भारत हो अभिलाषा।   भ्रष्टाचार से दूर हो हर जन,   सुचिता हो भारत की पहचान। विज्ञान, कला और नवाचार,   शिक्षा में हो अपार विस्तार।   सद्भाव, समानता, हो स्वाभिमान,   हर नर-नारी का हो सम्मान। पर्यावरण का हो संरक्षण,   हरे-भरे हों वन और उपवन।   जल, मृदा, औ...

पंच परमेश्वर

यह कैसा पंच परमेश्वर ? जिसमें न हो सत्य का स्वर  उनकी बात सुनो  तो,  बाते करता धरा से अम्बर । नीति व नियति का ज्ञान नहीं नैतिकता, रत्ती भर नहीं  आदर्श-मर्यादा को ठुकराकर अपने वचनों को ठहराहटा सही। यह कैसे पंच परमेश्वर  जिसमे न हो सत्य का स्वर खुद की तारीफो में कसीदे पढ़ते  कितने झगड़े को सुलझाया  यू ही, मैं पलक झपकते । वो अपनी अतीत की दुनिया  से, सबको रूबरू कराता। महज सौलह वर्ष का रहा होगा न्याय वेदी का प्रतिमूर्ति कहलाता। इतने दिव्य गुणों से सुशोभित  क्यों नहीं रखते प्रियजानो से मीत ?   कभी तो अपने उर, टटोलकर देख। या पढ़ प्रेमचंद्र रचित, अलगू चौधरी और जुम्मन शेख। असली पंच परमेश्वर से साक्षात्कार होगा तेरे अधरो पर न्याय का स्वर आएगा। हे दुनिया-जहान के न्याय देवता तेरे घर में भी नहीं है एकता। आपके कौशल और चातुर्य  अपनो के न्याय में क्यों पड़ जाती हैं शिथिलता । यह सब देख मुझे, होती हैं हैरानी और कौतुहलता। संपत्ति की इतनी लोभ दुर्गति होगी, करो जरा तुम क्षोभ कैसे समाज गढ़ना चाहते हो ? सिर्फ संपत्ति ठगने की चाह रखते हो। वो दिवस आज भी याद...

आदिवासी

उस निविड़ अरण्य का वासी निश्चल ,निर्भीक रहने को आदि  हष्ट - पुष्ट भुजाएं विशाल छाती आधे -कपड़े पहने धोती खाकी  सुबह से शाम खेत में मेहनत, परिवार के लिए रोटी-दाल, पर्यावरण के प्रति प्रेम, वनदेवी का  आशीर्वाद। परिवार के साथ खुशहाल जीवन, प्रकृति के बीच अथाह प्रेम  आदिम संस्कृति का संरक्षण, वनवासी का संस्कार।

नागी जलाशय

नागी जलाशय में पक्षियों का कलरव  गुंजित हैं, चारो दिशा में, इनके स्वर मधुर और नीरव। नभचर है वो, सुंदर है वो इनके संगीत में छुपा है, जीवन का सार। कितने दिव्य गुण समाहित है इस पंखधारी प्राण में। अमृत है, जीवनदायनी है सुमधुर है, इनके चहक रवानी है। अपनी विद्यमानता से सबको पुलकित कर नागी जलाशय को सुशोभित करते। वह दृश्य कितना मनोरम लगता, जब उजले व्योम से कोई खग शने-शने उतरता जलाशय पर। वह निश्चल-निर्भय होकर तैरता अविराम  असंख्य पंखधारी बन आते यहां मेहमान। ओ मनुज कभी तो आओ, जीवन के झंझावात को छोड़कर। आओ बैठो कुछ पल, इस जलाशय के तट पर। देखो कैसे शांत जल में खग खिलते कमल की तरह दिखते मनमोहक। उनके कलरव से गूंजता है वातावरण जैसे कोई मधुर संगीत हो रहा है प्रसारण। कभी उड़ते हैं, कभी तैरते हैं कभी मित्रों संग अटखेलियां करते हैं कभी शांत बैठकर आकाश निहारते। इनकी चंचलता देखकर चित्त होता है प्रसन्न जैसे कोई स्वर्ग का दृश्य हो रहा प्रस्फुटन। नागी जलाशय में पक्षियों का कलरव, है जीवन का एक अनमोल अनुभव। इससे मिलता है मन को शांति और सुकून, जैसे कोई दिव्य आशीर्वाद  हो रहा प्रचुर।** ✍️Kartik Kusu...

गौरैया और मैना: प्रकृति की चहचहाती विरासत, विलुप्त होने की कगार पर

परिचय : गौरैया और मैना, ये दो छोटी चिड़ियां जो कभी हमारे घरों में, खिड़कियों पर, पेड़ों पर, और हर जगह चहचहाती रहती थीं, आजकल कम ही देखने को मिलती हैं। इनकी घटती संख्या पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन गई है, और इनके विलुप्त होने की संभावना एक चिंताजनक विषय है। गौरैया और मैना का महत्व: गौरैया और मैना पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कीटों को खाकर फसलों को बचाती हैं, बीजों को फैलाकर पौधों के प्रजनन में मदद करती हैं, और प्रकृति के सौंदर्य का एक अभिन्न अंग हैं। इनकी चहचहाहट जीवन में खुशी और उत्साह लाती है। गौरैया और मैना के विलुप्त होने के कारण: गौरैया और मैना के विलुप्त होने के कई कारण हैं, जिनमें शामिल हैं: आवास विनाश: शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, और कृषि के विस्तार के कारण इन पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। कीटनाशकों का उपयोग: खेती में अत्यधिक मात्रा में कीटनाशकों के उपयोग से इन पक्षियों के लिए भोजन की कमी हो रही है, और इनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान और मौसम में बदलाव इन पक्षियों के जीवन चक्र को प्रभा...