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पटना कलम चित्रकला शैली

बिहार प्रदेश की गौरवशाली परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में पटना कलम चित्रकला का उच्च स्थान है। मध्यकालीन बिहार में पटना कलम चित्रकला ने बिहार के कला क्षेत्र को काफी समृद्ध किया। पटना कलम चित्रकला का विकास मुगल साम्राज्य के पतन के बाद उत्पन्न परिस्थितियों में हुआ। औरंगजेब द्वारा राज दरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नबाव के यहां आश्रय लिया इससे कला के विभिन्न क्षेत्रीय रूप उभरे जिनमें पटना शैली प्रमुख है। इस शैली का विकास 18वीं सदी के मध्य से लेकर बीसवीं सदी के आरंभ तक हुआ। इस शैली पर एक ओर  मुग़लशाही शैली का प्रभाव है तो दूसरी और तत्कालीन ब्रिटिश कला का भी प्रभाव है। इसके अतिरिक्त इसमें स्थानीय विशिष्टताएं भी स्पष्ट है। मुगल तत्व, स्थानीय भारतीय तत्व एवं यूरोपीय तत्वों के सम्मिश्रण के कारण इस शैली की अलग पहचान बनी है। तत्कालीन नवधनाढ्य भारतीय एवं ब्रिटिश कलाप्रेमी इस कला के संरक्षक और खरीददार थे। पटना कलम के चित्र लघु चित्र की श्रेणी में आते हैं। जिन्हें अधिकतर कागज एवं कहीं-कहीं हाथी दांत पर बनाया गया है। इस शैली का मुख्य विषय जनसा...

संथाल विद्रोह (1855-56)

 संथाल विद्रोह   में सबसे प्रमुख था 1855-56 ई० का विद्रोह। संथाल पूर्वी बिहार के भागलपुर से राजमहल तक के क्षेत्र में निवास करते आ रहे थे। इस क्षेत्र को ' दमन ए कोह ' कहा जाता था। क्षेत्र की जमीन को काफी मेहनत से उपजाऊ और कृषि योग्य बनाकर वह यहां झूम एवं पंडू विधि से कृषि किया करते थे। इस कारण जमीन से उनका भावनात्मक संबंध बन चुका था। संथालो का अपना धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा भी था।  ब्रिटिश शासन की शुरुआत ने उनके जीवन को तहस-नहस कर दिया। उनके सरदारों को जमींदारों का दर्जा देकर लगान की नई व्यवस्था लागू कर दी गई। संथालो द्वारा उत्पादित प्रत्येक वस्तु पर कर आरोपित कर दिया गया। कर वसूली के लिए उतरी बिहार के लोगों की नियुक्ति की गई। समय पर लगान न देने के कारण उनकी जमीन नीलाम की जाने लगी। इस स्थिति से बचने के लिए संथाल महाजनों और साहूकारों पर आश्रित होते चले गए। यह महाजन कर्ज के बदले संथाल बहू बेटियों की आबरू लूटने की कोशिश तक करने लगे। इस स्थिति में पुलिस और न्यायालय ने भी संस्थानों का साथ नहीं दिया। इस तरह यह लोग औपनिवेशिक  अर्थव्यवस्था के जाल में फंस गए। परि...

परिवर्तन

परिवर्तन संसार का नियम चक्र चलता  जीवन-मरन  शिशुकाल से जवानी तक, जवानी से ये बूढ़े तन,  बीत जाते अभाव में, यहां उनका सारा जीवन  जन्म लेती नई पीढ़ियां उनकी  फिर चल पड़ता यह चक्र जीवन-मरण  कुंठाए छीन लेती कभी-कभी  बीच रास्ते में ही उनका जीवन परित्याग कर देते अपना जीवन कर वह आत्महत्या । कारण पता चलता।  भुखमरी, गरीबी, कर्ज, के बोझ में दबा था किसने हक छीनी इसकी ? क्यों यह अपनी जान गवाई ? किस दर्द दुखों में दवा था ? जो इसने यह कदम उठाई इस अन्याय के खिलाफ कौन आवाज उठाएगा ? इन गरीबों की हक के लिए कौन सामने आएगा ? क्या,है कोई ऐसे नेता  जो इस दुखियो का दर्द समझ सके? या है कोई ऐसा संगठन  गरीबों का रूदन-कंद्रन रोक सके? ✍️ Kartik Kusum 

अभाविप

स्वर्णिम इतिहास है मेरा कर्म है महान अपनी गाथा क्या लिखूं जन-जन जाने मेरा काम स्थापना काल से ही  कर रहा हूं राष्ट्र पुनर्निर्माण छात्र शक्ति का हूं परिचायक या उनसे जुड़ी हो कोई शिकायत करता हूं त्वरित समाधान स्वर्णिम इतिहास है मेरा कर्म है महान छात्र शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है। छात्र ही है मां भारती की संतान तू ही कर्णधार इस देश का यथार्थ के मार्गो पर चलेगा  अपने कर्मों से तू। सिंचित करेगा, देश की शान  स्वर्णिम इतिहास है मेरा कर्म है महान छात्र हितों की सिर्फ उपमा देना  अब तो मेरे लिए बेईमानी होगी विभिन्न क्षेत्रों में योगदान है हमारा उनकी भी सराहना करनी होगी जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी  या कच्छ से हो कामरूप तक कर्म भूमि रही सदा यह मेरा हुं मैं भारत के कोने-कोने तक बांग्लादेश की अवैध घुसपैठ या कश्मीर की धारा तीन सौ सत्तर जिन मुद्दों को उठाया देखो आज है कितना अंतर  चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई राष्ट्र विरोधी शक्तियां पुनः उत्पन्न हुई साजिशे चल रही निरंतर  वो बैठा है मुल्क के बाहर और अंदर नापाक इरादे है उनके  करेंगे भारत को टुकड़े- टुकड़े  ढाल बन ...