परिवर्तन संसार का नियम
चक्र चलता जीवन-मरन
शिशुकाल से जवानी तक, जवानी से ये
बूढ़े तन,
बीत जाते अभाव में, यहां उनका सारा जीवन
जन्म लेती नई पीढ़ियां उनकी
फिर चल पड़ता यह चक्र जीवन-मरण
कुंठाए छीन लेती कभी-कभी
बीच रास्ते में ही उनका जीवन
परित्याग कर देते अपना जीवन
कर वह आत्महत्या ।
कारण पता चलता।
भुखमरी, गरीबी, कर्ज, के बोझ में दबा था
किसने हक छीनी इसकी ?
क्यों यह अपनी जान गवाई ?
किस दर्द दुखों में दवा था ?
जो इसने यह कदम उठाई
इस अन्याय के खिलाफ
कौन आवाज उठाएगा ?
इन गरीबों की हक के लिए
कौन सामने आएगा ?
क्या,है कोई ऐसे नेता
जो इस दुखियो का दर्द समझ सके?
या है कोई ऐसा संगठन
गरीबों का रूदन-कंद्रन रोक सके?
✍️ Kartik Kusum
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