मेघा रे.. मेघा
आकर तू छा।
उमड़-घुमड़ कर तू आ
प्यासी है यह धरा
जरा पानी तो बरसा
उमस भरी यह परिवेश
गर्मी देती कितनी क्लेश
आकर तू इसे मिटा
मेघा रे.. मेघा
आकर तू छा।
रवि की तपिश
गई वसुधा सूख
सुखी वृक्षों की डाली
जीर्ण हुए उनके पत्ते
दूब की पत्तियां भी हुई पीली
गईया रंभाती,
चरने को हरी-हरी
अपनी करुणा तू दिखा
मेघा रे.. मेघा
आकर तू छा।
खेत की मेढ़ पर
कृषक विचारे।
खेतों में कैसे बिचड़ा डालें
देवता इंद्र से करे पुकार
कहे, हे कृपानिधान,
दीन- दयालु, कृपालु
अंबर से तू पानी बरसा
मेघा रे.. मेघा
आकर तू छा।
✍️ Kartik kusum yadav
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