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सखा

यार है, वह दोस्त है सबों का सखा है, विश्व बंधुत्व का पाठ योग से सिखाता है। सौम्य विचार, मधुर वाणी अधरों पर मुस्कान रवानी श्याम वर्ण, चेहरा नवल उसपर उनका ह्रदय धवल  आज यकायक   सुन खबर सभी का हृदय हुआ विह्वल दुर्घटनाग्रस्त हो गया, वह मेरा सखा विधि का विधान कोई रोक न सका शायद विधाता की यही थी मर्जी तभी तो मेरे सखा दुर्घटनाग्रस्त हुई चोटिल होकर जब   मूर्च्छा हुआ होगा असहनीय पीड़ा, सखा तू कैसे सहा होगा ? वह मनुष्य देव तुल्य ही होगा जिसने तुम्हें , सड़क पर पड़ा देख दौड़ा होगा उस मनुज को कोटि-कोटि बधाई पर यह खबर सुनकर आंखें नम हुई भाई। आप कहा करते थे योग से युवाओं को जोड़ेंगे उनके शरीर को , तरुण और सशक्त करेंगे। रोग - रुग्णता न आस -पास होगी भारत देश होगा निरोगी इस सुनहरे सपने को किसकी बुरी नजर लग गई भाई। ✍️ Kartik Kusum Yadav

मेघा

मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। उमड़-घुमड़ कर तू आ प्यासी है यह धरा जरा पानी तो बरसा उमस भरी यह परिवेश गर्मी देती कितनी क्लेश आकर तू इसे मिटा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। रवि की तपिश  गई वसुधा सूख  सुखी वृक्षों की डाली  जीर्ण हुए उनके पत्ते दूब की पत्तियां भी हुई पीली गईया रंभाती, चरने को हरी-हरी अपनी करुणा तू दिखा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। खेत की मेढ़ पर कृषक विचारे। खेतों में कैसे बिचड़ा डालें देवता इंद्र से करे पुकार कहे, हे कृपानिधान,  दीन- दयालु, कृपालु अंबर से तू पानी बरसा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। ✍️ Kartik kusum yadav 

मेरे भारत का सपना

जो इस धरा पे जन्म लिया बचपन के खेल-खेल में मिट्टी से मटमैला हुआ सर से पांव तक मिट्टी से लीट जाता था शाम की वेला में जब दौड़ा-दौड़ा घर जाता था। मां आंचल फैलाकर  गले लगा लेती थी माटी से लेपित तनु को हाथो से सहलाती थी और कहती क्यों रोज-रोज बेटा मिट्टी से लीट जाते हो अपने अच्छे लिवास को नित्य मटमैला करते हो  कैसी तेरी शौक चढ़ी है इस मिट्टी से लीट जाने की कीतना भी समझाऊ  तू करता हरदम मनमानी  बेटा मां से कहता  मां जिसे तुम मिट्टी कहती हो  वह भी तुम्हारी तरह माता है तूने  ही तो सिखलाई हो यह सबकी भारत माता है  इस माटी से लेपित तनु को मां इसे उपहास ना करना यह भारत मां की करुणा है इसका मजाक न करना  इस मिट्टी में असीम शक्ति है संपूर्ण विश्व को बदलने की जो जुड़ जाए इस मिट्टी से निखर जाए तनु सह बुद्धि उनकी मैं देख रहा हूं स्वप्न माते एक ऐसे भारत का जो जन्म लिए इस धरा पर  करे खुद पर गौरवान्वित मां न हो यहां अन्न की किल्लत और भूख का रोना मां हरयाली से लहराए हरदम यह धरा  भारत का हर एक कोना-कोना मां  जहां मान -सम्मान हो  मेरी तरह माटी से ल...

पर्यावरण और सनातन जीवन-दर्शन

पर्यावरण अनुकूल हो जीवन आपके कृत से न हो नष्ट पर्यावरण आओ साथ मिलकर ले यह प्रण  पश्चिमी देशों की वो उपभोक्तावादी संस्कृति भोगवादी, विलासमय जैसी कुरीति  ओतप्रोत है जो आपके मन- मस्तिष्क पर  इन्हे परित्याग करे, इनमें है विकृति यह नहीं है भारत की संस्कृति सनातन धर्म और उनके जीवन-दर्शन की परंपरा आत्मसात और अंगीकार करने की है आवश्यकता यह संस्कृति इतनी समृद्ध है। विश्व को जनकल्याण कर सकती है  इस परंपरा को मानने वाले ही आंगन में तुलसी का पूजन करती है। वटवृक्ष तथा पीपल पेड़ का अराधन  यही है सनातन संस्कृति का जीवन-दर्शन  पर्वतो, और वायु को देवता के रूप में पूजते लोक आस्था की वह महान छठ पर्व नदियों की जलधारा को स्वच्छ कर क्या यह संदेश नहीं देती? लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट की पहल ।

नदी बचाओ

निर्मल धारा थी नदियाँ की निर्मल था उसका पानी कण-कण में व्याप्त थी स्वच्छता शीतल था उसका पानी कल-कल कर वह बहती थी नीर सरिता की थी मीठी  अपने अमृत जलधारा से प्यास बुझाती थी सबकी  नीर चख तृप्त हो जाते थे  दीर्घकाय हाथी से लेकर   चींटी उपहार स्वरूप मिला था  देन थी यह ईश्वरीय प्रकृति  मनुष्य की धनलोलुपता ने रेत का व्यवसाय किया उत्खनन यंत्र लगाकर निर्झरिणी के संग अन्याय किया  यत्र-तत्र  कर खुदाई  नदी की अस्तित्व मिटाई संविदाकार ने भी,  की खूब कमाई। दुर्दशा हो गई सरिता की इतनी तप रही जेठ दुपहरी अमृत जलधारा देने वाली। तरस रही बूंद भर वारि  सदियों से ढोती आई थी नर का वह पाप सकल  मरणासन्न अवस्था में आज  कोई नहीं जरा भी विकल उत्स थी यह जल की, पर आज उत्स है आर्थिक दिवस हो या वो तम सघन   देखो थम नहीं रहा उत्खनन  पर्यावरणविद कुछ करो पहल पकड़ हाथ बैनर निकल आह्वान कर आवाम से संदेश हो यह प्रबल -प्रखर  यात्रा कर हर नुक्कड़ हर कोना  हर घर से निकलेगा अब सुंदरलाल बहुगुणा। ✍️ Kartik Kusum Yadav 

दुखिया की बात

साहब सुन लीजिए एक दुखिया की बात दीन-हीन गरीब हूं। न ही मेरा कोई रकीब है गांव में रहती हूं खेत-खलियानो में मजदूरी कर जीवन-यापन करती हूं। रहने की है। टूटी झोपड़ी-मड़ाई सीधी-साधी हूं। न करती हूं, किसी से लड़ाई इत्ती सी है मेरी समस्या आस लगाए बैठी हूं कब से कर दीजिए न समाधान  घने जंगलों बीच वो गांव मेरा जहां मैं डाले हूं डेरा ऊंचा है वहां मेरा मचान कंदमूल,फल तोड़   अरण्य का करती हूं, उसका रसपान  सुन पक्षियों का गुंजन कर लेती हूं,खुद का मनोरंजन परंतु पेयजल के लिए हमेशा तरसती हूं बर्तन लेकर, कोसों दूर भटकती हूं इस उमस भरी गर्मी में बूंद-बूंद नीर के लिए लोग आपस में भी लड़ पड़ते है। ऊपर से  वो दुर्गम रास्ते वो कांटे थक जाती हूं आते-जाते तब जाकर प्यास बुझती है। दिवस के आधे समय यूं ही कट जाते आते-जाते  दया करो साहब दया करो इस दुखिया पर दया करो पेयजल की ग्रामीणों के लिए कुछ उपाय करो। ✍️ Kartik kusum yadav 

नहीं बनूंगा आतंकी

मैं नहीं बनूंगा आतंकी तू लाख जतन कर ले पहन यह वर्दी खाकी षड्यंत्र रच ले। पर श्रद्धा अटल है, मेरी अपने देश पर अपने देश की संविधान पर भारत राष्ट्र की सभ्य पुलिस है तो विनम्र रहिए। वरना खाकी वाले साहब सुन ले मेरी बात जनता ने हिटलर, मुसोलिनी तक को मारी है लात। ✍️ कार्तिक कुसुम यादव