जिन हाथों में कलम थीं,
जो दिन-रात कागज़ों से संघर्षरत थे,
सुनहरे अक्षरों में सपनों को बुनते,
हर दिन जीवन के नए अध्याय गढ़ते।
दिल में बस एक चाह —
देशप्रेम और सेवा का भाव।
निर्मल हृदय, शांत चित्त,
न धन की भूख, न लोभ की चाह।
लेकिन...
अगर उन्हीं हाथों में बंदूकें आ जाएं,
और वे चलाना भी सीख जाएं —
तो पहले उन्हें पकड़ो,
जिन्होंने उन हाथों में बंदूकें थमाई।
साथ ही यह भी जानो —
कलम पकड़ने वाले हाथों में
बंदूकें क्यों आईं?
उन्हें ढूंढो, उन्हें कोई पकड़ो!
✍️ कार्तिक कुसुम यादव
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