Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2023

सखा

यार है, वह दोस्त है सबों का सखा है, विश्व बंधुत्व का पाठ योग से सिखाता है। सौम्य विचार, मधुर वाणी अधरों पर मुस्कान रवानी श्याम वर्ण, चेहरा नवल उसपर उनका ह्रदय धवल  आज यकायक   सुन खबर सभी का हृदय हुआ विह्वल दुर्घटनाग्रस्त हो गया, वह मेरा सखा विधि का विधान कोई रोक न सका शायद विधाता की यही थी मर्जी तभी तो मेरे सखा दुर्घटनाग्रस्त हुई चोटिल होकर जब   मूर्च्छा हुआ होगा असहनीय पीड़ा, सखा तू कैसे सहा होगा ? वह मनुष्य देव तुल्य ही होगा जिसने तुम्हें , सड़क पर पड़ा देख दौड़ा होगा उस मनुज को कोटि-कोटि बधाई पर यह खबर सुनकर आंखें नम हुई भाई। आप कहा करते थे योग से युवाओं को जोड़ेंगे उनके शरीर को , तरुण और सशक्त करेंगे। रोग - रुग्णता न आस -पास होगी भारत देश होगा निरोगी इस सुनहरे सपने को किसकी बुरी नजर लग गई भाई। ✍️ Kartik Kusum Yadav

मेघा

मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। उमड़-घुमड़ कर तू आ प्यासी है यह धरा जरा पानी तो बरसा उमस भरी यह परिवेश गर्मी देती कितनी क्लेश आकर तू इसे मिटा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। रवि की तपिश  गई वसुधा सूख  सुखी वृक्षों की डाली  जीर्ण हुए उनके पत्ते दूब की पत्तियां भी हुई पीली गईया रंभाती, चरने को हरी-हरी अपनी करुणा तू दिखा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। खेत की मेढ़ पर कृषक विचारे। खेतों में कैसे बिचड़ा डालें देवता इंद्र से करे पुकार कहे, हे कृपानिधान,  दीन- दयालु, कृपालु अंबर से तू पानी बरसा मेघा रे.. मेघा आकर तू छा। ✍️ Kartik kusum yadav 

मेरे भारत का सपना

जो इस धरा पे जन्म लिया बचपन के खेल-खेल में मिट्टी से मटमैला हुआ सर से पांव तक मिट्टी से लीट जाता था शाम की वेला में जब दौड़ा-दौड़ा घर जाता था। मां आंचल फैलाकर  गले लगा लेती थी माटी से लेपित तनु को हाथो से सहलाती थी और कहती क्यों रोज-रोज बेटा मिट्टी से लीट जाते हो अपने अच्छे लिवास को नित्य मटमैला करते हो  कैसी तेरी शौक चढ़ी है इस मिट्टी से लीट जाने की कीतना भी समझाऊ  तू करता हरदम मनमानी  बेटा मां से कहता  मां जिसे तुम मिट्टी कहती हो  वह भी तुम्हारी तरह माता है तूने  ही तो सिखलाई हो यह सबकी भारत माता है  इस माटी से लेपित तनु को मां इसे उपहास ना करना यह भारत मां की करुणा है इसका मजाक न करना  इस मिट्टी में असीम शक्ति है संपूर्ण विश्व को बदलने की जो जुड़ जाए इस मिट्टी से निखर जाए तनु सह बुद्धि उनकी मैं देख रहा हूं स्वप्न माते एक ऐसे भारत का जो जन्म लिए इस धरा पर  करे खुद पर गौरवान्वित मां न हो यहां अन्न की किल्लत और भूख का रोना मां हरयाली से लहराए हरदम यह धरा  भारत का हर एक कोना-कोना मां  जहां मान -सम्मान हो  मेरी तरह माटी से ल...

पर्यावरण और सनातन जीवन-दर्शन

पर्यावरण अनुकूल हो जीवन आपके कृत से न हो नष्ट पर्यावरण आओ साथ मिलकर ले यह प्रण  पश्चिमी देशों की वो उपभोक्तावादी संस्कृति भोगवादी, विलासमय जैसी कुरीति  ओतप्रोत है जो आपके मन- मस्तिष्क पर  इन्हे परित्याग करे, इनमें है विकृति यह नहीं है भारत की संस्कृति सनातन धर्म और उनके जीवन-दर्शन की परंपरा आत्मसात और अंगीकार करने की है आवश्यकता यह संस्कृति इतनी समृद्ध है। विश्व को जनकल्याण कर सकती है  इस परंपरा को मानने वाले ही आंगन में तुलसी का पूजन करती है। वटवृक्ष तथा पीपल पेड़ का अराधन  यही है सनातन संस्कृति का जीवन-दर्शन  पर्वतो, और वायु को देवता के रूप में पूजते लोक आस्था की वह महान छठ पर्व नदियों की जलधारा को स्वच्छ कर क्या यह संदेश नहीं देती? लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट की पहल ।