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Showing posts from May, 2023

नदी बचाओ

निर्मल धारा थी नदियाँ की निर्मल था उसका पानी कण-कण में व्याप्त थी स्वच्छता शीतल था उसका पानी कल-कल कर वह बहती थी नीर सरिता की थी मीठी  अपने अमृत जलधारा से प्यास बुझाती थी सबकी  नीर चख तृप्त हो जाते थे  दीर्घकाय हाथी से लेकर   चींटी उपहार स्वरूप मिला था  देन थी यह ईश्वरीय प्रकृति  मनुष्य की धनलोलुपता ने रेत का व्यवसाय किया उत्खनन यंत्र लगाकर निर्झरिणी के संग अन्याय किया  यत्र-तत्र  कर खुदाई  नदी की अस्तित्व मिटाई संविदाकार ने भी,  की खूब कमाई। दुर्दशा हो गई सरिता की इतनी तप रही जेठ दुपहरी अमृत जलधारा देने वाली। तरस रही बूंद भर वारि  सदियों से ढोती आई थी नर का वह पाप सकल  मरणासन्न अवस्था में आज  कोई नहीं जरा भी विकल उत्स थी यह जल की, पर आज उत्स है आर्थिक दिवस हो या वो तम सघन   देखो थम नहीं रहा उत्खनन  पर्यावरणविद कुछ करो पहल पकड़ हाथ बैनर निकल आह्वान कर आवाम से संदेश हो यह प्रबल -प्रखर  यात्रा कर हर नुक्कड़ हर कोना  हर घर से निकलेगा अब सुंदरलाल बहुगुणा। ✍️ Kartik Kusum Yadav 

दुखिया की बात

साहब सुन लीजिए एक दुखिया की बात दीन-हीन गरीब हूं। न ही मेरा कोई रकीब है गांव में रहती हूं खेत-खलियानो में मजदूरी कर जीवन-यापन करती हूं। रहने की है। टूटी झोपड़ी-मड़ाई सीधी-साधी हूं। न करती हूं, किसी से लड़ाई इत्ती सी है मेरी समस्या आस लगाए बैठी हूं कब से कर दीजिए न समाधान  घने जंगलों बीच वो गांव मेरा जहां मैं डाले हूं डेरा ऊंचा है वहां मेरा मचान कंदमूल,फल तोड़   अरण्य का करती हूं, उसका रसपान  सुन पक्षियों का गुंजन कर लेती हूं,खुद का मनोरंजन परंतु पेयजल के लिए हमेशा तरसती हूं बर्तन लेकर, कोसों दूर भटकती हूं इस उमस भरी गर्मी में बूंद-बूंद नीर के लिए लोग आपस में भी लड़ पड़ते है। ऊपर से  वो दुर्गम रास्ते वो कांटे थक जाती हूं आते-जाते तब जाकर प्यास बुझती है। दिवस के आधे समय यूं ही कट जाते आते-जाते  दया करो साहब दया करो इस दुखिया पर दया करो पेयजल की ग्रामीणों के लिए कुछ उपाय करो। ✍️ Kartik kusum yadav 

नहीं बनूंगा आतंकी

मैं नहीं बनूंगा आतंकी तू लाख जतन कर ले पहन यह वर्दी खाकी षड्यंत्र रच ले। पर श्रद्धा अटल है, मेरी अपने देश पर अपने देश की संविधान पर भारत राष्ट्र की सभ्य पुलिस है तो विनम्र रहिए। वरना खाकी वाले साहब सुन ले मेरी बात जनता ने हिटलर, मुसोलिनी तक को मारी है लात। ✍️ कार्तिक कुसुम यादव 

पुलिस के दो रूप

जंगलों में अधिवास था  लोग असभ्य समझते थे देखन में कुरूप काला था पर अंदर से भोला-भाला था गांव की बसावट कानन में थी पुलिस के नजरो में खटकती थी पुलिस अधीक्षक आए एक दिन  बस्ती को करने छानबीन कहीं अपराधिक तत्व न हो इस गांव में। गांव की जनता भोले-भाले पुलिस की वर्दी देखकर वो इधर-उधर को भागे  पुलिस को लगी, जैसे यह लोग है अपराधी तभी तो कर रहे हैं भागम-भागी पुलिस ध्वनि विस्तारक यंत्र से उद्घोष लगाई।  उनका शब्द था, ठहरो भाई फिर उसने कहा, भागो मत  पुलिस आपकी दोस्त हैं  पुलिस तुम्हारे हितैषी है पुलिस भी आपकी तरह नागरिक है आप नागरिक बिना बर्दी वाले पुलिस हो तभी सहयोगी पुलिसकर्मी आए  उनके द्वारा बैनर लगाए बैनर में लिखा था, समुदायिक पुलिसिंग व्यवस्था  फिर बड़े-बड़े साहब पहुंचे मंच लगाए गए वहां ऊंचे विराजमान हुए सभी अधिकारीगण सामने उपस्थित हुए जनतागण संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ जनता का भरोसा पुलिस पर हुआ अनगिनत समस्याएं सुने जनता से सुलझाने का वादा किया उनसे उनके हक अधिकार की  रक्षा हेतु चर्चा की और उन्हें मुख्यधारा से जुड़कर चलने की नसीहत दी साथ निवेदन किया ...