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Showing posts from April, 2023

आप है।

आप है। तभी तो यह जग है।  एहसास हो या ना हो क्या फर्क पड़ता आप से ही तो सारी कायनात है। आप है तो। यह हरे-भरे जंगल है। आप से ही तो अरण्य में वन्यजीव है। आप है। तभी तो अमराई  में कोयल की कूक है। दुनिया के इस दर्पण के सामने कभी तो अपना आनन लाकर देखें । आप ही आप दिखेंगे। आप है। तभी तो वनस्पतियों पर कुसुम है। आपसे ही तो। वृक्षों पर गिलहरियों की चढ़ने-उतरने की क्रीड़ा है आप है । तो भौंरा गाते है । आपसे ही तो वनों की नैसर्गिक सुंदरता है। नि:शब्द स्तब्ध तिमिर की बेला में दूर कहीं अरण्य से जब मयूर गाती है। तो मुझे एहसास होता है यह सब आपकी वजह से तो है फिर खुद की अस्तित्व पर सवाल क्यों ? आपके भौतिक रूप से होने का इतने साक्ष्य पड़े हैं फिर भी खुद को खुद में ढूंढने चले क्यों ? ✍️ Kartik Kusum Yadav 

मंजूषा चित्रशैली

भागलपुर क्षेत्र की लोक कथाओं में अधिक प्रचलित ' बिहुला विषहरी' की कथाएं ही इस चित्र शैली में चित्रित होती है। मूलतः भागलपुर (अंग) क्षेत्र में सुपरिचित इस चित्र शैली में मंदिर जैसी दिखने वाली एक मंजूषा, जो सनाठी (सनाई) की लकड़ी से बनाई होती है। पर बिहुला विषहरी की गाथाओं से संबंधित चित्र कुचियो द्वारा बनाए जाते हैं। इस चित्रकला की एक विशेषता यह है कि इसमें स्त्री-पुरुषों के चेहरे का सिर्फ बया पक्ष ही बनाया जाता है। इस चित्र शैली के चित्रों को भागलपुर-दिल्ली विक्रमशिला एक्सप्रेस रेलगाड़ी में चित्रित किया गया है।

यूट्यूबर पत्रकार

हमर गांव में आईल रहे एगो पत्रकार यूट्यूबर  दूबर-पातर छरहर रहे लागत जैसे टूबर फिर भी हम सम्मान कईली गांव में आवे के कारण पुछली एटीट्यूड से उ भरल रहे तभी तो बतावे से इंकार कईली  हमरे मन में शंका भईले ओकरा के प्रति फर्जी पत्रकार के तय्यो हम बोलली ओकरा से हमर गांव में बड़ी समस्या आई ई टूटल सड़क दिखाई स्कूलीया के दरकल दीवार भी पिये के पानी नहीं रहे दिखा द तनी ई सब सरकार के ऊ बोलली हमरा से इ सब हम, सब दिखाई  पर एकरा लिए लगतो रुपैया न दैलही तो हम हाथ जोड़ो हियो भैय्या  हम बोलली ओकरा से आप रहे एक पत्रकार और पत्रकार के कुछ धर्म होवे है। निष्पक्ष,निर्भीक और ईमानदार के ई सब गुण तोरा में नाय हो त तोअ फिर काहे के पत्रकार ? इतना सुन ओकरा अपमान लगले तबे ऊ हमरा धमकी देलके जा हियाे ऐजे से अभी हम नाए हीयो तोरा से कम हमरे गांव में कुछ आस्तीन के सांप रहले ओकरा से जाएके हमर नाम पता पूछलके  ओकर बाद ऊ गईले थाना थानेदार रहे थाना में झूठ-फूस भर दिहिले ओकर काना में फोन करलको हमरा दारोगा सुनाबे लगले अपन ताना-वाना कड़क आवाज में बोललो हमरा काहे करलिह अपमान पत्रकार के ? आओ अभी तुम थाना । नि...

राजनीति में एक सुशिक्षित एवं संगठित लोगो को होना क्यों जरुरी है। आलोचनात्मक समीक्षा ।

कोई भी शासन प्रणाली तभी सफल हो सकती है जब तक उसके सदस्यगण शिक्षित हो। अथार्थ शिक्षा वह कारगर हथियार है जिसके माध्यम से नीति का नियमन और उसका भली-भांति क्रियांवयन होता है। हालांकि वर्तमान परिपेक्ष में विधान मंडलो के सदस्य भली-भांति शिक्षित नहीं होते, बावजूद इसके कार्यपालिका के सदस्यों के द्वारा क्रियांवयन होता रहता है। इससे शासन प्रणाली में गतिरोध जारी है। इन अशिक्षित सदस्यों के कारण यह सीमितयाँ मात्र राजनीतिक संस्थाएं बनती जा रही है। जो लोकतांत्रिक शासन में एक अभिशाप है।                    पंचायत एवं अन्य संस्थाओं हेतु कुशल सदस्यों के चयन में आम-जन की जागरुकता एवं उनका भली-भांति शिक्षित होना अनिवार्य है। एक शिक्षित आम जनता ही कुशल प्रशासक का चयन कर सकती है। शिक्षित होने से आम जनता में जागरुकता का संचार होता है। जागरुक जनता ही अपने हक एवं अधिकार को समझ सकती है। सरकार के विभिन्न योजनाओं को सफल बनाने में आम जन की जागरुकता शासन के लिए उत्प्रेरक तत्व एवं योजना को सफलीभूत होने में मददगार सिद्ध होती है। यह आम जन ही स्वयं में से शिक्षित प्रशासक ...