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Showing posts from November, 2024

आत्मबोध का आह्वान

तुझे लड़ना है,   मुझे प्यार बांटना है।   तुझे तोड़ना है,   मुझे जोड़ना है।   तेरी वाणी असभ्य,   मेरी सौम्य और सभ्य।   तू भौतिकता को सर्वोच्च माना,   मेरे लिए तुच्छ जहाँ सारा।   तेरे संस्कार तुझे मुबारक हो,   आओ संवाद करें,   सबकुछ यहाँ बराबर हो।   क्यों रूठे हो एक भूखंड के खातिर?   यह तो किराए का है,   आज तेरी तो कल किसी और की होगी।   अवसर मिला है क्षणिक,   मिलबांट कर उपभोग करो,   यही है इसका गणित।   इतनी बौद्धिकता भी नहीं,   तो तू उपभोग के अधिकारी नहीं।   त्याग करो, वत्स,  लोभ, मोह, मद, मत्स का।   अंगीकार करो, वत्स,   सत्य, न्याय, और सच का।   जिसने इसे स्वीकारा है,   वह फला-फूला और खुद को संवारा है।   जीवन के आखिरी पड़ाव पर सही,   कुछ करो आज और अभी यहीं।   घृणा की धधकती ज्वाला से बाहर निकलो,   अपने कोमल नयन संग मुस्...

नाम देव काम ऐब

नाम देव, काम ऐब   बातों में छल, दिखे फरेब।   देव का अर्थ, देवत्व से भरा,   शब्दों में उसकी, महिमा गहरा।   कैसी विडंबना है इस संसार की,   मनुज का नाम रखा ‘देव’ यहाँ,   मुख से निकले, शब्द अहंकारी,   गर्व से पढ़े, गालियाँ यहाँ।   थू-थू कर सब थूकें उसे,   कहे, "अरे मूर्ख! मत पढ़ गाली।"   संभाल मर्यादा, कर ख़्याल,   ईश्वर से कर, तू एक वादा।   मत कर रसपान गाली का,   रख संजीवनी, वाणी का। ✍️ कार्तिक कुसुम यादव