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Showing posts from March, 2025

कविता, तू कायर है...

तू कायर है तूने अपना परिचय दिया, बदले की भावना में बहकर, दूसरो का सहारा लिया। तुझे लगा कि तू रणनीतिकार है, नहीं रे... तू बेकार है। तू बेकार इतना कि, तुझसे तुलना पंक के कीड़े से करना व्यर्थ। तुझझे नहीं हो पाएगा, तेरे कृत का है यही अर्थ। तुझे क्या लगा? मैं इस तुच्छ चीजों से विचलित हो जाऊंगा, बदले की भावना में बहकर, मैं तुझसे लड़ूंगा। नहीं रे... जो स्वीकार कर लिया हार का, जिसके सामने डाल दिया तू खड़ग, उनके साथ ऐसे कृत्य सुशोभित नहीं। अगर अभी भी है भुजाओं में बल, और रखते हो युद्ध कौशल, तो आ... तुझे ललकार रहा हूं, आमने-सामने की लड़ाई लड़। अगर मां के स्तन का क्षीर पिया हो, तो कर युद्ध निडर। मुझे पता है रे... तेरे रगों में कायरों का खून है। भुजाएं शक्तिहीन हैं। रण की तलवारों की टकराहट सुन, तेरे हृदय का स्पंदन होता शून्य। तू रण के लायक नहीं। तू कायर है रे... तू कायर सही। ✍️ Kartik Kusum Yadav